Powered By Blogger

शुक्रवार, 24 मई 2024

दयानंद दर्शन

 
    दयानंद दर्शन का अर्थ होता है "दया की दृष्टि"। यह एक महत्वपूर्ण धार्मिक और सामाजिक आंदोलन का हिस्सा था, जो 19वीं शताब्दी के मध्य में भारतीय समाज में उत्थित हुआ।
    दयानंद सरस्वती, जिनका असली नाम मूलशंकर था, इस आंदोलन के प्रमुख नेता थे। उन्होंने भारतीय समाज को धार्मिक और सामाजिक सुधार के लिए प्रेरित किया। उनके द्वारा उजागर किए गए विचारों में वेदों का महत्व, एकता, स्वावलम्बन, और धर्म के साथ शिक्षा का महत्व शामिल है।
    दयानंद दर्शन का मुख्य उद्देश्य था भारतीय समाज को वेदों की शिक्षाओं और विचारधारा के प्रति पुनः प्रेरित करना। उन्होंने वेदों को सर्वोत्तम धर्मग्रंथ माना और उनका पुनरावलोकन किया। उनके द्वारा स्थापित आर्य समाज, जो समाज के सुधार और वेदों के प्रमाण की पुनर्जागरण के लिए काम करता था, उसने बाद में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

1. दयानंद सरस्वती का जन्म कहाँ हुआ था?
उत्तर: गुजरात, भारत
2. दयानंद सरस्वती ने किस वर्ष आर्य समाज की स्थापना की थी?
उत्तर: 1875
3. दयानंद सरस्वती का विचार 'वेदों को अपनाओ, अध्ययन करो और प्रचार करो' किसे कहा जाता है?
उत्तर: ग्राम स्वराज्य
4. दयानंद सरस्वती किस शिक्षा को प्राथमिक मानते थे?
उत्तर: वेद
5. दयानंद सरस्वती के अनुसार, शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: व्यक्ति के अन्तःकरण का उन्नति करना
6. दयानंद सरस्वती किस विचारधारा के प्रति प्रतिष्ठित थे?
उत्तर: अध्यात्मवाद
7. दयानंद सरस्वती के अनुसार, विद्यार्थी को किसे अपना आदर्श मानना चाहिए?
उत्तर: ऋषि
8. दयानंद सरस्वती का मानना था कि शिक्षा किसे देनी चाहिए?
उत्तर: विद्यार्थी को सर्वत्र और सर्व समय
9. दयानंद सरस्वती के अनुसार, शिक्षा का मुख्य ध्येय क्या होना चाहिए?
उत्तर: मनुष्य के उत्थान की दिशा में
10. दयानंद सरस्वती की शिक्षा विचारधारा को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर: आदर्शवाद
11. दयानंद सरस्वती की शिक्षा विचारधारा के अनुसार, शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
उत्तर: मानव समाज का सुधार
12. दयानंद सरस्वती का मानना था कि शिक्षा किसे समर्पित होनी चाहिए?
उत्तर: देश और समाज
13. दयानंद सरस्वती के अनुसार, शिक्षा का प्रमुख साधन क्या है?
उत्तर: गुरु और वेद
14. दयानंद सरस्वती का मानना था कि विद्यार्थी को किस विषय का अध्ययन करना चाहिए?
उत्तर: वेद
15. दयानंद सरस्वती के अनुसार, शिक्षा का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर: मानव समाज का सुधार
16. दयानंद सरस्वती के शिक्षा दर्शन में, मुख्य ध्येय क्या है?
उत्तर: ऋषि जीवन की आदर्श मीमांसा, समाज के सुधार का प्रमुख उद्देश्य, या धर्म की प्रचार-प्रसार।
17. दयानंद सरस्वती के शिक्षा दर्शन में, शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य क्या है?
उत्तर: विद्यार्थी के व्यक्तित्व का संपूर्ण विकास, वेदों की शिक्षा और प्रचार, या समाज के सुधार के लिए ज्ञान प्रदान।
18. दयानंद सरस्वती के अनुसार, शिक्षा का महत्व क्या है?
उत्तर: समाज के उत्थान और समृद्धि के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण, अज्ञान का नाश, या विज्ञान और धर्म की संतुलित शिक्षा।
19. दयानंद सरस्वती के शिक्षा दर्शन में, शिक्षा के लिए सही साधन क्या है?
उत्तर: गुरु, वेद, और संबंधित शास्त्रों का आधारभूत अध्ययन, स्वयं का अध्ययन, या समाजिक संरचनाओं का सुधार।
20. दयानंद सरस्वती के शिक्षा दर्शन में, विद्यार्थी को किसे आदर्श माना जाता है?
उत्तर: ऋषि, योगी, या धर्मगुरु।
21. दयानंद सरस्वती के अनुसार, शिक्षा के लिए सही उद्देश्य क्या होना चाहिए?
उत्तर: विज्ञान, धर्म, और समाज सेवा का प्रचार, आदर्श मानवता का विकास, या सामाजिक और आध्यात्मिक जागरूकता का प्रसार।
22. दयानंद सरस्वती के शिक्षा दर्शन में, विद्यार्थी का विकास किस प्रकार होना चाहिए?
उत्तर: वेदों के आधारित ज्ञान, स्वाध्याय और सामाजिक न्याय के प्रति समर्पित शिक्षा, आत्मनिर्भरता और नैतिक उन्नति, या व्यावसायिक और तकनीकी योग्यता का प्राप्ति।
23. दयानंद सरस्वती के शिक्षा दर्शन में, समाज के सुधार के लिए कौन-कौन सी कार्यवाही की जानी चाहिए?
उत्तर: शिक्षा के प्रसार, धर्म और संस्कृति के प्रचार, या समाज में समानता और न्याय का स्थापना।
24. दयानंद सरस्वती के अनुसार, शिक्षा के लिए सही उपाय क्या होना चाहिए?
उत्तर: समाज में

भारतीय दार्शनिक विचारधारा : जैन शिक्षा दर्शन

  

भारतीय दार्शनिक विचारधारा : जैन शिक्षा दर्शन
(Indian Philosophical Thought: Jain Educational Philosophy)
1. जैन दर्शन की मूल अवधारणा
  • जैन दर्शन का मुख्य उद्देश्य आत्मा की मुक्ति (मोक्ष) है।
  • यह अहिंसा, अपरिग्रह और सत्य के सिद्धांतों पर आधारित है।
  • यह आत्मा और कर्म के संबंध को समझाता है – आत्मा स्वतंत्र है, परंतु कर्मों के कारण बंधन में है।
2. ज्ञान की प्रकृति (Epistemology)
 जैन दर्शन के अनुसार ज्ञान पांच प्रकार का होता है:
  1. मति ज्ञान – इंद्रियों और मन से प्राप्त ज्ञान
  2. श्रुत ज्ञान – शास्त्रों और श्रवण से प्राप्त ज्ञान
  3. अवधि ज्ञान – अलौकिक ज्ञान
  4. मनः पर्याय ज्ञान – दूसरों के मन को जानने की शक्ति
  5. केवल ज्ञान – सर्वज्ञता या पूर्ण ज्ञान

3. अनेकांतवाद (Multiplicity of Views)
  • सत्य को कई दृष्टिकोणों से समझा जा सकता है।
  • यह छात्रों को सहिष्णुता, बहुदृष्टिकोण और संवाद की शिक्षा देता है।
  • “सप्तभंगी न्याय” के माध्यम से किसी भी वस्तु को सात दृष्टियों से समझा जा सकता है।
4. अहिंसा का शिक्षार्थ महत्व
  • जैन शिक्षा में अहिंसा सर्वोपरि नैतिक मूल्य है।
  • विद्यार्थियों में करुणा, संवेदना और सह-अस्तित्व की भावना का विकास किया जाता है।
  • यह शिक्षण में अनुशासन और शांति को प्रोत्साहित करता है।
5. संयम और चारित्रिक विकास
  • शिक्षा का मुख्य उद्देश्य आत्मानुशासन और चारित्रिक शुद्धता है।
  • ब्रह्मचर्य, सत्य, अस्तेय (चोरी न करना), अपरिग्रह का पालन विद्यार्थी जीवन में आवश्यक माना गया है।
6. शिक्षा का उद्देश्य (Aims of Education)
  • आत्मा की शुद्धि और मुक्ति प्राप्त करना।
  • नैतिकता, संयम और आत्मज्ञान को प्राप्त करना।
  • जीवन में संतुलन, समता और सादगी का विकास करना।
7. गुरु का महत्व
  • गुरु को सर्वोच्च स्थान दिया गया है – वह आत्मा को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है।
  • “त्रिरत्न” – सम्यक ज्ञान, सम्यक दर्शन, और सम्यक चरित्र – गुरु के माध्यम से प्राप्त किए जाते हैं।
8. अनुशासन का स्थान
  • शिक्षा में कठोर अनुशासन अनिवार्य है।
  • आचरण, भाषा, भोजन, विचार – सभी में संयम अनिवार्य माना गया है।
9. शिक्षण विधियाँ (Teaching Methods)
  • संवाद (वितर्क-विवाद), प्रवचन, प्रश्नोत्तर विधि, आत्मावलोकन (self-introspection)।
  • ब्रह्मचर्य आश्रमों में शिक्षा दी जाती थी।
  • ध्यान (meditation) और तप (penance) भी शिक्षा का हिस्सा थे।
10. जैन शिक्षा साहित्य
  • आगम, सूत्र, और उपांग ग्रंथों में जैन शिक्षा का वर्णन है।
  • तत्त्वार्थ सूत्र, उत्तराध्ययन सूत्र, और समवायांग सूत्र मुख्य ग्रंथ हैं।
  • इन ग्रंथों के माध्यम से नैतिक शिक्षा, साधना, और व्यवहारिक ज्ञान सिखाया जाता है।
11. समाज में शिक्षा का उद्देश्य
  • समतामूलक समाज का निर्माण।
  • मनुष्य और प्राणियों के बीच करुणा और अहिंसा की भावना का प्रसार।
  • संयमित और सशक्त नागरिकों का निर्माण।
12. शिक्षा में आध्यात्मिकता का समावेश
  • जैन शिक्षा आध्यात्मिक उन्नति पर बल देती है।
  • आत्मा की यात्रा, पुनर्जन्म, और मोक्ष जैसे विषयों को पढ़ाया जाता है।
13. शिक्षा में स्त्री और पुरुष समानता
  • जैन परंपरा में महिलाओं को भी शिक्षा का अधिकार दिया गया।
  • अनेक जैन साध्वियों ने धार्मिक ग्रंथों की रचना की और शिक्षा में योगदान दिया।
14. आधुनिक शिक्षा में उपयोगिता
  • जैन शिक्षा दर्शन आज के युग में नैतिक शिक्षा, पर्यावरण शिक्षा और अहिंसा आधारित सह-अस्तित्व की भावना को बढ़ावा दे सकता है।
  • यह जीवन शैली में संतुलन, आंतरिक शांति, और मानसिक स्वास्थ को सुदृढ़ करता है।
15. निष्कर्ष
  • जैन शिक्षा दर्शन केवल ज्ञान प्राप्ति नहीं बल्कि आत्म-उत्थान की प्रक्रिया है।
  • यह व्यक्ति को न केवल ज्ञानी बल्कि नैतिक, शांतिप्रिय, और समाजोपयोगी बनाता है।
  • यह भारतीय दर्शन की एक अद्वितीय धरोहर है।

 

    जैन शिक्षा दर्शन के अनुसार, शिक्षा और ज्ञान का प्राप्त करना मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य है। इस दर्शन में संसार में प्रत्येक जीव को आत्मज्ञान और शिक्षा का महत्व प्रामुख्य दिया गया है। जैन शिक्षा विचारधारा में अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, ब्रह्मचर्य, और अनेकांतवाद की महत्वपूर्ण भूमिका है। यहाँ शिक्षा व्यक्ति को आत्मज्ञान, आत्मसाक्षात्कार, और स्वयं परिचय की दिशा में ले जाती है। इसका मूल मंत्र "परोपकारः पुण्याय, पापाय परपीदनम्" है, जिसका अर्थ है कि दूसरों के लिए उपकार करना पुण्य है, और दूसरों को कष्ट पहुंचाना पाप है।

 

1. जैन शिक्षा दर्शन के अनुसार, मानव जीवन का मुख्य उद्देश्य क्या है?
   a) अहिंसा
   b) सम्यग्ज्ञान
   c) आत्मज्ञान और शिक्षा का प्राप्त करना
   d) ध्यान
उत्तर: c) आत्मज्ञान और शिक्षा का प्राप्त करना
2. जैन शिक्षा दर्शन में, किस गुण को महत्वपूर्ण माना जाता है?
   a) अहिंसा
   b) असत्य
   c) विद्या
   d) क्रोध
उत्तर: a) अहिंसा
3. जैन शिक्षा दर्शन में "परोपकारः पुण्याय, पापाय परपीदनम्" का क्या मतलब है?
   a) कष्ट देना पाप है, और उपकार करना पुण्य है
   b) खुशी देना पाप है, और उपकार करना पुण्य है
   c) आत्मसमर्पण पाप है, और अहिंसा पुण्य है
   d) ध्यान करना पाप है, और सम्यग्ज्ञान पुण्य है
उत्तर: a) कष्ट देना पाप है, और उपकार करना पुण्य है
4. जैन शिक्षा दर्शन में, निम्नलिखित में से किसे प्राणी के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है?
   a) अज्ञान
   b) सम्यक् ज्ञान
   c) अनेकांतवाद
   d) अहिंसा
उत्तर: d) अहिंसा
5. जैन शिक्षा दर्शन में, किसे "चारित्र धर्म" कहा जाता है?
   a) सत्य
   b) ध्यान
   c) अहिंसा
   d) अनेकांतवाद
उत्तर: c) अहिंसा
6. जैन शिक्षा दर्शन के अनुसार, ज्ञान का सबसे अच्छा साधन क्या है?
   a) अनुशासन
   b) सम्यग्ज्ञान
   c) समाधि
   d) व्रत
उत्तर: b) सम्यग्ज्ञान
7. जैन शिक्षा दर्शन के अनुसार, किस गुण का पालन करने से सत्य का ज्ञान प्राप्त होता है?
   a) अहिंसा
   b) अपरिग्रह
   c) ब्रह्मचर्य
   d) अनेकांतवाद
उत्तर: a) अहिंसा
8. जैन शिक्षा दर्शन में, किसे "पञ्च परमेष्ठी" कहा जाता है?
   a) तीर्थंकर
   b) संघ
   c) आचार्य
   d) उपाध्याय
उत्तर: a) तीर्थंकर
9. जैन शिक्षा दर्शन में, निम्नलिखित में से कौन-सा सिद्धान्त अहिंसा को महत्वपूर्ण मानता है?
   a) अनेकांतवाद
   b) सम्यग्ज्ञान
   c) परमार्थिक अज्ञान
   d) स्वधर्म
उत्तर: a) अनेकांतवाद
10. जैन शिक्षा दर्शन में, किसे "चारित्र धर्म" कहा जाता है?
    a) सम्यग्ज्ञान
    b) सत्य
    c) अहिंसा
    d) ध्यान
उत्तर: c) अहिंसा
11. जैन शिक्षा दर्शन के अनुसार, उच्च ज्ञान की प्राप्ति के लिए कौन-सा मार्ग सर्वोत्तम माना गया है?
    a) तप
    b) समाधि
    c) सम्यग्ज्ञान
    d) स्वाध्याय
उत्तर: c) सम्यग्ज्ञान
 

Educational Philosophical Foundation of Education

 शिक्षा के दार्शनिक आधार

(Educational Philosophical Foundation of Education)

                शिक्षा केवल पाठ्यक्रम या कक्षा तक सीमित नहीं होती, इसका आधार दर्शन (Philosophy) होता है। दार्शनिक आधार यह तय करता है कि शिक्षा का उद्देश्य, स्वरूप, पद्धति, मूल्यांकन और शिक्षक-छात्र संबंध क्या होगा।

1. शिक्षा और दर्शन का संबंध

  1. दर्शन (Philosophy) ज्ञान की मूल प्रकृति, सत्य, मूल्य, अस्तित्व और चेतना से जुड़ा हुआ है।
  2. शिक्षा दर्शन के विचारों को क्रियात्मक रूप देती है।
  3. शिक्षा को "दर्शन की प्रयोगशाला" कहा जाता है – क्योंकि जो भी दर्शन सोचता है, शिक्षा उसे व्यवहार में लागू करती है।
  4. प्रत्येक शैक्षिक प्रक्रिया जैसे – पाठ्यक्रम निर्माण, अनुशासन, शिक्षण विधियाँ, मूल्यांकन आदि – दर्शन से प्रेरित होते हैं।

2. शिक्षा के दार्शनिक आधार के घटक (Key Foundations)

क्र.

दार्शनिक आधार

संक्षिप्त विवरण

1

प्राकृतिकवाद (Naturalism)

प्रकृति को सर्वोच्च मानकर शिक्षा देना, बालक की रुचियों और विकास के अनुसार।

2

आदर्शवाद (Idealism)

आत्मा, नैतिकता और उच्च मूल्यों को प्राथमिकता देना। उद्देश्य – चरित्र निर्माण।

3

यथार्थवाद (Realism)

वस्तुवादी ज्ञान और इंद्रिय अनुभवों पर आधारित शिक्षा, विज्ञान और तर्क को प्राथमिकता।

4

प्रगतिकारिता (Progressivism)

अनुभव, प्रयोग और सामाजिक आवश्यकताओं के अनुसार शिक्षा देना।

5

प्रयोगवाद (Experimentalism)

निरंतर प्रयोग और वैज्ञानिक दृष्टिकोण द्वारा ज्ञान की खोज।

6

नव यथार्थवाद (Neo-realism)

भौतिक एवं सामाजिक यथार्थ दोनों को शिक्षा में स्थान देना।

7

वस्तुवाद (Materialism)

शिक्षा को केवल भौतिक जगत और सामाजिक संरचना तक सीमित मानना।

8

मानवतावाद (Humanism)

व्यक्ति के संपूर्ण विकास, स्वतंत्रता और गरिमा पर बल देना।

3. शिक्षा के उद्देश्य पर प्रभाव

  1. आदर्शवाद – नैतिकता, सत्य, सौंदर्य, आत्मा की उन्नति
  2. यथार्थवाद – वैज्ञानिक सोच, तर्क, वस्तुनिष्ठ दृष्टिकोण
  3. प्रगतिवाद – सामाजिक परिवर्तन और लोकतांत्रिक मूल्यों का विकास
  4. प्राकृतिकवाद – स्वतंत्रता, आत्मविकास और प्रकृति के अनुरूप विकास
  5. मानवतावाद – आत्मसाक्षात्कार और व्यक्ति केंद्रित शिक्षा

4. पाठ्यक्रम निर्माण पर प्रभाव

  1. आदर्शवाद – साहित्य, दर्शन, नैतिकता आधारित विषय
  2. यथार्थवाद – गणित, विज्ञान, भूगोल जैसे वस्तुनिष्ठ विषय
  3. प्रगतिवाद – समाजशास्त्र, नागरिक शास्त्र, प्रोजेक्ट-आधारित कार्य
  4. मानवतावाद – संगीत, कला, आत्मविकास के पाठ्यक्रम

5. शिक्षण विधियों पर प्रभाव

दर्शन

विधियाँ

आदर्शवाद

भाषण, संवाद, आत्ममंथन

यथार्थवाद

प्रयोगशाला, प्रेक्षण, तर्क आधारित शिक्षा

प्रगतिवाद

परियोजना विधि, अनुभव आधारित शिक्षण

प्राकृतिकवाद

बालक-केंद्रित, गतिविधि आधारित शिक्षा

मानवतावाद

संवादात्मक, सहानुभूति व करुणा-आधारित शिक्षा

 6. शिक्षक और छात्र के संबंध पर प्रभाव

  1. आदर्शवाद – शिक्षक = पथ-प्रदर्शक व आदर्श
  2. प्रगतिवाद – शिक्षक = सहयोगी व अनुभव का आयोजक
  3. प्राकृतिकवाद – शिक्षक = अवलोकक, बच्चा = केंद्र
  4. मानवतावाद – शिक्षक = संवेदनशील मार्गदर्शक, छात्र = स्वतंत्र आत्मा

7. मूल्यांकन पर प्रभाव

  1. आदर्शवाद – नैतिक मूल्यों पर आधारित मूल्यांकन
  2. यथार्थवाद – वस्तुनिष्ठ परीक्षा प्रणाली
  3. प्रगतिवाद – सतत और समग्र मूल्यांकन (CCE)
  4. मानवतावाद – आत्ममूल्यांकन और रचनात्मक फीडबैक

8. शिक्षा की प्रकृति के बारे में दार्शनिक दृष्टिकोण

दर्शन

शिक्षा की प्रकृति

आदर्शवाद

आत्मा का विकास

यथार्थवाद

ज्ञान प्राप्ति का साधन

प्रगतिवाद

समाज सुधार का साधन

प्राकृतिकवाद

प्राकृतिक विकास की प्रक्रिया

मानवतावाद

मानव की पूर्णता की ओर यात्रा

9. शिक्षा के माध्यम का चयन

  1. आदर्शवाद – शुद्ध भाषा, संस्कृत/दर्शन की शिक्षा
  2. यथार्थवाद – दृश्य-श्रव्य माध्यम, तकनीकी उपकरण
  3. प्रगतिवाद – प्रोजेक्ट्स, अनुभव आधारित सामग्री
  4. मानवतावाद – वार्ता, आर्ट-आधारित शिक्षण

10. निष्कर्ष (Conclusion)

  • शिक्षा का दर्शन से गहरा संबंध है।
  • शिक्षा का उद्देश्य, पद्धति, मूल्यांकन और सामग्री – सब दर्शन द्वारा प्रभावित होते हैं।
  • किसी भी राष्ट्र की शिक्षा नीति उसके दार्शनिक दृष्टिकोण को प्रतिबिंबित करती है।
  • आधुनिक युग में शिक्षा के दर्शन को बहुआयामी, समावेशी और मानवीय बनाया जाना चाहिए।

1. शैक्षिक दर्शन में "प्रकृतिवाद" की अवधारणा के लिए कौन जाना जाता है?

A) जॉन डेवी

B) जीन-जैक्स रूसो

C) प्लेटो

D) अरस्तू

उत्तर: B) जीन-जैक्स रूसो

2. कौन सा शैक्षिक दर्शन इस विश्वास पर जोर देता है कि शिक्षा को व्यक्तिगत छात्र की जरूरतों और रुचियों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए?  A) आदर्शवाद

   B) व्यावहारिकता

   C) अस्तित्ववाद

   D) प्रगतिवाद

   उत्तर: D) प्रगतिवाद

3. अनिवार्यता के अनुसार, शिक्षा का प्राथमिक ध्यान इस पर होना चाहिए:

A) छात्रों की आलोचनात्मक सोच कौशल का विकास करना

   B) छात्रों को समाज में उनकी भूमिकाओं के लिए तैयार करना

   C) छात्रों की रचनात्मकता और आत्म-अभिव्यक्ति का पोषण करना

   D) छात्रों को अपने स्वयं के मूल्यों और विश्वासों का पता लगाने के लिए प्रोत्साहित करना

   उत्तर: B) छात्रों को समाज में उनकी भूमिकाओं के लिए तैयार करना

4. बारहमासी शैक्षिक दर्शन का संस्थापक किसे माना जाता है?

  A) जॉन डेवी

   B) मोर्टिमर एडलर

   C) मारिया मोंटेसरी

   D) पाउलो फ़्रेयर

   उत्तर: B) मोर्टिमर एडलर

5. शिक्षा का कौन सा दर्शन सार्वभौमिक सत्य और कालातीत ज्ञान को पढ़ाने के महत्व पर जोर देता है?  A) व्यावहारिकता

    B) बारहमासीवाद

    C) अस्तित्ववाद

    D) यथार्थवाद

    उत्तर: B) बारहमासीवाद

6. शिक्षा में "सामाजिक पुनर्निर्माणवाद" की अवधारणा को विकसित करने के लिए कौन जाना जाता है?

     A) जॉन डेवी

    B) मैक्सिन ग्रीन

    C) थियोडोर ब्रामेल्ड

    D) नेल नोडिंग्स

    उत्तर: C) थियोडोर ब्रामेल्ड

7. आदर्शवाद के अनुसार, वास्तविकता का उच्चतम रूप निम्न में पाया जाता है:

    A) शारीरिक संवेदनाएँ

    B) भौतिक वस्तुएँ

    C) विचार या अवधारणाएँ

    D) भावनाएँ और संवेदनाएँ

    उत्तर: C) विचार या अवधारणाएँ

8. कौन सा शैक्षिक दर्शन अनुभवात्मक अधिगम और व्यावहारिक गतिविधियों के महत्व पर जोर देता है?  A) अनिवार्यता

   B) प्रगतिवाद

   C) यथार्थवाद

   D) अस्तित्ववाद

   उत्तर: B) प्रगतिवाद

9. शिक्षा में "रचनावाद" की अवधारणा के लिए कौन जाना जाता है?

    A) लेव वायगोत्स्की

   B) हॉवर्ड गार्डनर

   C) जेरोम ब्रूनर

   D) बेंजामिन ब्लूम

   उत्तर: A) लेव वायगोत्स्की

10. शिक्षा का कौन सा दर्शन छात्रों को लोकतांत्रिक समाज में सक्रिय और जिम्मेदार नागरिक बनने के लिए तैयार करने पर केंद्रित है?

    A) यथार्थवाद

    B) व्यावहारिकता

    C) सामाजिक पुनर्निर्माणवाद

    D) अस्तित्ववाद

    उत्तर: C) सामाजिक पुनर्निर्माणवाद


1. Who is known for the concept of "naturalism" in educational philosophy?

   A) John Dewey

   B) Jean-Jacques Rousseau

   C) Plato

   D) Aristotle

   Answer: B) Jean-Jacques Rousseau 

2. Which educational philosophy emphasizes the belief that education should focus on the individual student's needs and interests?

   A) Idealism

   B) Pragmatism

   C) Existentialism

   D) Progressivism

   Answer: D) Progressivism

3. According to essentialism, the primary focus of education should be on:

   A) Developing students' critical thinking skills

   B) Preparing students for their roles in society

   C) Nurturing students' creativity and self-expression

   D) Encouraging students to explore their own values and beliefs

   Answer: B) Preparing students for their roles in society

4. Who is considered the founder of the Perennialist educational philosophy?

   A) John Dewey

   B) Mortimer Adler

   C) Maria Montessori

   D) Paulo Freire

   Answer: B) Mortimer Adler

5. Which philosophy of education emphasizes the importance of teaching universal truths and timeless knowledge?

   A) Pragmatism

   B) Perennialism

   C) Existentialism

   D) Realism

   Answer: B) Perennialism

6. Who is known for developing the concept of "social reconstructionism" in education?

   A) John Dewey

   B) Maxine Greene

   C) Theodore Brameld

   D) Nel Noddings

   Answer: C) Theodore Brameld

7. According to idealism, the highest form of reality is found in:

   A) Physical sensations

   B) Material objects

   C) Ideas or concepts

   D) Emotions and feelings

   Answer: C) Ideas or concepts

8. Which educational philosophy emphasizes the importance of experiential learning and hands-on activities?

   A) Essentialism

   B) Progressivism

   C) Realism

   D) Existentialism

   Answer: B) Progressivism

9. Who is known for the concept of "constructivism" in education?

   A) Lev Vygotsky

   B) Howard Gardner

   C) Jerome Bruner

   D) Benjamin Bloom

   Answer: A) Lev Vygotsky

10. Which philosophy of education focuses on preparing students to be active and responsible citizens in a democratic society?

    A) Realism

    B) Pragmatism

    C) Social Reconstructionism

    D) Existentialism

    Answer: C) Social Reconstructionism


प्राकृतिकवाद (Naturalism) और शिक्षा

   प्राकृतिकवाद (Naturalism) और शिक्षा     1. प्राकृतिकवाद की  तत्व   मीमांसा (Metaphysics of Naturalism)      प्राकृतिकवाद की  तत्व   मीमां...