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गुरुवार, 3 जुलाई 2025

प्राकृतिकवाद (Naturalism) और शिक्षा

 

 प्राकृतिकवाद (Naturalism) और शिक्षा
 
1. प्राकृतिकवाद की तत्व मीमांसा (Metaphysics of Naturalism)
    प्राकृतिकवाद की तत्व मीमांसा के अनुसार वास्तविकता केवल भौतिक प्रकृति है। यह ईश्वर, आत्मा या परलोक को नहीं मानता। मनुष्य भी प्रकृति का एक भाग है और उसी के नियमों के अधीन है। सब कुछ वैज्ञानिक नियमों से चलता है।
    तत्व मीमांसा दर्शन के उस भाग को कहते हैं जो वास्तविकता के स्वरूप की चर्चा करता है।
प्राकृतिकवाद की तत्व मीमांसा के अनुसार:
  • वास्तविकता केवल भौतिक प्रकृति (Physical Nature) है।
  • यह ईश्वर, आत्मा या परलोक को नहीं मानता।
  • मनुष्य भी प्रकृति का एक भाग है और उसी के नियमों के अधीन है।
  • सब कुछ वैज्ञानिक नियमों से चलता है — चमत्कार या दैवी हस्तक्षेप का कोई स्थान नहीं।
मुख्य विचार: "प्रकृति ही अंतिम सत्य है।"

2. ज्ञानमीमांसा (Epistemology of Naturalism)
    प्राकृतिकवाद के अनुसार ज्ञान का स्रोत इंद्रिय अनुभव (Sense Experience) है। प्रेक्षण, प्रयोग और वैज्ञानिक विधियाँ ही ज्ञान प्राप्त करने के सही साधन हैं। कोई भी ऐसा ज्ञान जो अनुभव या परीक्षण पर आधारित न हो, वह अविश्वसनीय है।
ज्ञानमीमांसा यह बताती है कि हम ज्ञान कैसे प्राप्त करते हैं।
प्राकृतिकवाद के अनुसार:
  • ज्ञान का स्रोत इंद्रिय अनुभव (Sense Experience) है।
  • प्रेक्षण (Observation), प्रयोग (Experiment) और वैज्ञानिक विधियाँ ही ज्ञान प्राप्त करने के सही साधन हैं।
  • कोई भी ऐसा ज्ञान जो अनुभव या परीक्षण पर आधारित न हो, वह अविश्वसनीय है।
मुख्य सूत्र: "ज्ञान इंद्रियों के माध्यम से आता है, न कि अंतर्ज्ञान या ग्रंथों से।"

3. शिक्षा के उद्देश्य (Aims of Education According to Naturalism)
  • प्राकृतिकवाद शिक्षा को प्रकृति के नियमों के अनुसार चलाना चाहता है।
  • स्वाभाविक विकास (Natural Development): बच्चे का संपूर्ण विकास उसके प्राकृतिक गुणों के अनुसार होना चाहिए।
  • व्यक्तित्व विकास (Individual Development): हर बच्चा अद्वितीय है, उसे अपनी रुचियों और क्षमताओं के अनुसार विकसित होने देना चाहिए।
  • जीवन के लिए शिक्षा (Education for Life): शिक्षा का उद्देश्य केवल किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि व्यावहारिक जीवन के लिए तैयारी करना है।
  • स्वतंत्रता और आत्म-अनुशासन: बच्चा स्वतंत्र वातावरण में सीखता है, जिससे वह आत्म-अनुशासित बनता है।
मूल मंत्र: “बच्चे को प्रकृति के अनुसार बढ़ने दो।”

4. शिक्षण प्रक्रिया (Educative Process According to Naturalism)
    प्राकृतिकवादी शिक्षण प्रक्रिया में अनुभव आधारित शिक्षा, शिक्षक का मार्गदर्शक रूप, बाल-केंद्रित शिक्षा, और प्रकृति के साथ शिक्षण शामिल हैं।
प्राकृतिकवादी शिक्षण प्रक्रिया की विशेषताएँ:
  • अनुभव आधारित शिक्षा: पुस्तकें नहीं, अनुभव और गतिविधियाँ शिक्षा का आधार हैं।
  • शिक्षक एक मार्गदर्शक: शिक्षक बच्चों को निर्देश नहीं देता, बल्कि उन्हें सीखने का अवसर प्रदान करता है।
  • बाल-केंद्रित शिक्षा: शिक्षा बच्चे की रुचि, अनुभव और विकास के स्तर पर आधारित होनी चाहिए।
  • प्रकृति के साथ शिक्षण: बच्चे को बाहर प्रकृति के बीच सीखने का अवसर मिलना चाहिए।
प्रसिद्ध उदाहरण: रुसे ने कहा — “बच्चा स्वयं सबसे अच्छा शिक्षक है।”

5. शिक्षा में स्वतंत्रता और अनुशासन (Freedom and Discipline in Education)
स्वतंत्रता: 
  • बच्चा स्वाभाविक रूप से सीखना चाहता है, उसे खुला वातावरण मिलना चाहिए।
  • प्राकृतिकवाद मानता है कि बच्चा स्वाभाविक रूप से सीखना चाहता है।
  • उसे जबरदस्ती न पढ़ाया जाए, उसे खुला वातावरण मिले जहाँ वह स्वतंत्र रूप से सीख सके।
  • स्वतंत्रता का अर्थ अनुशासनहीनता नहीं, बल्कि स्वयं से सीखने की क्षमता है।
अनुशासन:
  • बाह्य अनुशासन को नकारा गया है, आंतरिक अनुशासन को प्रोत्साहन मिलता है। बच्चा अपने अनुभवों से सीखता है, न कि सजा से।
  • बाह्य अनुशासन (External Discipline) को नकारा गया है।
  • आंतरिक अनुशासन (Self-discipline) को प्रोत्साहन मिलता है — यानी बच्चा अपनी गलतियों से सीखता है और स्वयं को नियंत्रित करता है।
  • अनुशासन सिखाने के लिए दंड नहीं, बल्कि प्राकृतिक परिणाम (Natural Consequences) पर बल दिया जाता है।
सिद्धांत: “बच्चा अपने अनुभवों से सीखता है, न कि सजा से।”
निष्कर्ष (Conclusion)
    प्राकृतिकवाद एक यथार्थवादी और वैज्ञानिक शिक्षा दर्शन है जो मानता है कि शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का स्वाभाविक विकास होना चाहिए। शिक्षक एक सहयोगी होता है और स्वतंत्रता व अनुभव से अनुशासन विकसित होता है।
  • शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति का स्वाभाविक विकास होना चाहिए।
  • ज्ञान का स्रोत अनुभव है।
  • शिक्षक एक सहयोगी होता है, नियंत्रक नहीं।
  • स्वतंत्रता और अनुभव से अनुशासन विकसित होता है।

शैक्षिक पहलू

प्राकृतिकवाद का दृष्टिकोण

मुख्य विशेषताएँ

तत्व मीमांसा(Metaphysics)

प्रकृति ही अंतिम सत्य है

ईश्वर, आत्मा या परलोक को नहीं मानता

ज्ञानमीमांसा (Epistemology)

ज्ञान इंद्रियों से आता है

अनुभव, प्रेक्षण और प्रयोग पर आधारित

शिक्षा के उद्देश्य

स्वाभाविक और सम्पूर्ण विकास

व्यक्तित्व, स्वतंत्रता और व्यावहारिक जीवन की तैयारी

शिक्षण प्रक्रिया

अनुभव आधारित और बाल केंद्रित

शिक्षक मार्गदर्शक, प्रकृति के साथ शिक्षण

स्वतंत्रता

सीखने की स्वतंत्रता

बच्चे को निर्णय और गतिविधियों की स्वतन्त्रता दी जाती है

अनुशासन

आंतरिक अनुशासन

प्राकृतिक परिणामों से अनुशासन सीखा जाता है, दंड नहीं दिया जाता

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मंगलवार, 1 जुलाई 2025

शिक्षा का वैश्विक परिप्रेक्ष्य: समानताएँ, चुनौतियाँ और सुधार की दिशा में प्रयास

शिक्षा का वैश्विक परिप्रेक्ष्य: समानताएँ, चुनौतियाँ और सुधार की दिशा में प्रयास
 Commonalities & common challenges, in educational systems of world
 
    शिक्षा न केवल व्यक्ति के मानसिक, सामाजिक और नैतिक विकास का माध्यम है, बल्कि यह समाज और राष्ट्र की प्रगति की नींव भी है। आज विश्व भर में शिक्षा को मानवाधिकार के रूप में स्वीकार किया जा चुका है। यद्यपि विभिन्न देशों की शैक्षिक प्रणालियाँ अलग-अलग सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक पृष्ठभूमियों पर आधारित हैं, फिर भी इनमें कई समानताएँ और सामान्य चुनौतियाँ विद्यमान हैं। विशेष रूप से सामाजिक न्याय, समावेशन, लैंगिक समानता, मानसिक-शारीरिक कल्याण तथा मानवीय मूल्यों का समावेश, शिक्षा की गुणवत्ता और उपलब्धता के लिए आवश्यक बन गया है।

 1. शैक्षिक प्रणालियों में समानताएँ

1. शिक्षा तक पहुंच का अधिकार: अधिकांश देशों में शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता दी गई है।
2. निःशुल्क एवं अनिवार्य प्रारंभिक शिक्षा: कई देशों में 6-14 वर्ष तक के बच्चों के लिए शिक्षा निःशुल्क और अनिवार्य है।
3. शिक्षा का सार्वभौमिक उद्देश्य: सभी देशों में शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्ति का समग्र विकास, नागरिकता की समझ, और समाज में योगदान है।
4. शिक्षा की स्तरीकरण प्रणाली: प्राथमिक, माध्यमिक और उच्च शिक्षा का विभाजन लगभग सभी देशों में होता है। 
  • अधिकांश देशों में शिक्षा को मूल अधिकार माना गया है।
  • प्राथमिक और माध्यमिक स्तर की निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा लगभग हर जगह लागू है।
  • शिक्षा का उद्देश्य समग्र व्यक्तित्व विकास, नागरिकता और सामाजिक उत्तरदायित्व पर केंद्रित है।
  • शिक्षा प्रणाली प्रायः तीन स्तरों में विभाजित होती है – प्राथमिक, माध्यमिक और उच्चतर।

2. सामान्य चुनौतियाँ
(a) सामाजिक अन्याय
  • वंचित वर्गों (जाति, नस्ल, धर्म) को समान अवसर नहीं मिलते।
  • शिक्षा में असमानता और भेदभाव अब भी विद्यमान हैं।
  • जातीय, धार्मिक, आर्थिक और भाषाई भेदभाव के कारण शिक्षा में असमानताएँ।
  • ग्रामीण, आदिवासी, अल्पसंख्यक वर्गों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक पहुंच में कठिनाई।
(b) समावेश (Inclusion)
  • विशेष आवश्यकताओं वाले बच्चों (दिव्यांग, भाषाई, आर्थिक) के लिए उचित व्यवस्थाएँ नहीं हैं।
  • शारीरिक और मानसिक रूप से अक्षम बच्चों को सामान्य शिक्षा में शामिल करना चुनौतीपूर्ण है।
  • दिव्यांग बच्चों, आर्थिक रूप से कमजोर, भाषाई रूप से भिन्न बच्चों के लिए समुचित व्यवस्था का अभाव।
  • समावेशी शिक्षा हेतु आवश्यक संसाधनों और शिक्षकों की कमी।
(c) लैंगिक भेदभाव
  • कई देशों में लड़कियों की शिक्षा पर प्रतिबंध या उपेक्षा होती है।
  • STEM (विज्ञान, तकनीक, इंजीनियरिंग, गणित) क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी कम है।
  • कई देशों में लड़कियों की शिक्षा पर रोक या उपेक्षा।
  • लिंग आधारित सामाजिक रूढ़ियाँ, विद्यालय छोड़ने की दरें, और असुरक्षित स्कूल वातावरण।
3. प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में सुधार के आधार पर पुनर्गठन और मानक
1. समावेशी शिक्षा नीति: सभी वर्गों, लिंगों और क्षमताओं के बच्चों को एक साथ पढ़ाने की व्यवस्था। विशेष आवश्यकता वाले बच्चों के लिए समावेशी कक्षा। छात्र-केंद्रित और सीखने की विविध शैलियों को स्वीकारने वाली शिक्षा व्यवस्था।

2. शिक्षकों का प्रशिक्षण: विविध पृष्ठभूमियों से आए छात्रों को पढ़ाने के लिए शिक्षकों को संवेदनशील एवं प्रशिक्षित बनाया जाए। शिक्षकों को विविध सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमियों के छात्रों के साथ काम करने हेतु प्रशिक्षित किया जाए। लैंगिक समानता, समावेशन और मानसिक स्वास्थ्य पर आधारित प्रशिक्षण।

3. गुणवत्ता और नवाचार: रटने की बजाय सोचने, समझने, और समस्याएँ हल करने की क्षमता पर बल। रटने की बजाय सोचने, समझने और सामाजिक उत्तरदायित्व की शिक्षा।पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा, शांति और सहिष्णुता जैसे मूल्य शामिल हों।
4. समान पाठ्यचर्या मानक: राष्ट्र या वैश्विक स्तर पर न्यूनतम शिक्षा मानक तय किए जाएं।
5. प्रौद्योगिकी का समावेश: डिजिटल डिवाइड को कम करके सभी बच्चों को तकनीक-सक्षम शिक्षा दी जाए।

4. मुख्य सामाजिक आयाम और मूल्यों पर ज़ोर
सामाजिक न्याय- शिक्षा के माध्यम से सभी को समान अवसर, अधिकार और सम्मान देना।
हाशिए पर पड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाना। शिक्षा के माध्यम से असमानताओं को दूर कर, समान अवसर देना। सामाजिक रूप से वंचित समूहों की भागीदारी को प्रोत्साहित करना।
समावेशन - हर बच्चे की भिन्न आवश्यकताओं को समझते हुए समान रूप से शिक्षा प्रदान करना।भौतिक पहुंच (स्कूल भवन), पाठ्यचर्या, भाषा, और संसाधनों को समावेशी बनाना।
सभी विद्यार्थियों के लिए बिना भेदभाव के शिक्षा सुनिश्चित करना। भिन्न क्षमताओं और संस्कृतियों को स्वीकार कर उनकी गरिमा बनाए रखना।
लैंगिक समानता - लड़के और लड़कियों दोनों के लिए समान अवसर।लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं। लड़कों और लड़कियों दोनों के लिए एक जैसे अवसर, संसाधन और समर्थन। विद्यालयों में लैंगिक संवेदनशीलता पर आधारित वातावरण।
मानसिक और शारीरिक कल्याण - पाठ्यक्रम में योग, खेल, मनोवैज्ञानिक परामर्श को शामिल करना। परीक्षा का तनाव कम करने के उपाय। पाठ्यक्रम में खेल, योग, कला, परामर्श जैसी गतिविधियाँ शामिल हों। परीक्षा प्रणाली में सुधार कर छात्रों पर मानसिक दबाव को कम किया जाए।
शांति और मानवीय मूल्य - सहअस्तित्व, सहिष्णुता, करुणा, और लोकतांत्रिक मूल्यों की शिक्षा देना। बच्चों को जिम्मेदार और संवेदनशील नागरिक बनाना। शिक्षा का उद्देश्य केवल ज्ञान देना नहीं बल्कि करुणा, सहयोग, सहिष्णुता और विश्व शांति की भावना का निर्माण भी है।

निष्कर्ष:
    वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में शिक्षा को केवल जानकारी देने की प्रक्रिया के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह एक सशक्त औज़ार है जो सामाजिक असमानताओं को समाप्त कर सकता है, सामाजिक न्याय को बढ़ावा दे सकता है और एक समावेशी, शांतिपूर्ण तथा मूल्याधारित समाज की रचना कर सकता है। इसलिए प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा में पुनर्गठन और मानकीकरण की आवश्यकता है, ताकि प्रत्येक बालक-बालिका को सम्मान, समान अवसर और उज्ज्वल भविष्य की गारंटी दी जा सके।

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गुरुवार, 26 जून 2025

शिक्षा में दर्शन की प्रकृति और उसका प्रभाव (The Nature of Philosophy in Education)

 शिक्षा में दर्शन की प्रकृति और उसका प्रभाव 

(The Nature of Philosophy in Education)

1. दर्शन की प्रकृति (Nature of Philosophy)

·         दर्शन का शाब्दिक अर्थ है – ‘ज्ञान से प्रेम’ (Love of Wisdom)।

·         यह सत्य, अस्तित्व, ज्ञान, मूल्यों, तर्क और चेतना पर चिंतन करता है।

·         यह विचारशीलता, विश्लेषण और तर्क पर आधारित होता है।

·         यह किसी भी विषय की मूल प्रकृति को समझने का प्रयास करता है।

·         शिक्षा, समाज, विज्ञान, कला, संस्कृति आदि क्षेत्रों का आधार दर्शन है।

2. दर्शन का उपयोग (Use of Philosophy)

·         दिशा निर्धारण में सहायक।

·         समस्या समाधान हेतु वैचारिक स्पष्टता प्रदान करता है।

·         नीतिगत चिंतन और निर्णयों में सहायक।

·         शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण करता है।

·         शोध की वैचारिक रूपरेखा देता है।

3. दर्शन की प्रमुख शाखाएँ (Branches of Philosophy)

·         अस्तित्वमीमांसा (Metaphysics): सत्य, अस्तित्व और ब्रह्मांड की प्रकृति का अध्ययन।

·         ज्ञानमीमांसा (Epistemology): ज्ञान क्या है, उसका स्रोत और सीमाएँ क्या हैं।

·         मूल्यमीमांसा (Axiology): मूल्य, नैतिकता और सौंदर्यशास्त्र का अध्ययन।

·         तर्कशास्त्र (Logic): सही तर्क और विचार के नियमों का ज्ञान।

·         भाषा दर्शन: भाषा के अर्थ और संरचना का अध्ययन।

·         मनो-दर्शन: मानसिक प्रक्रियाओं, आत्मा और चेतना का विश्लेषण।

4. अस्तित्वमीमांसा और शिक्षा में उसका प्रभाव

·         शिक्षा के उद्देश्य और लक्ष्य को परिभाषित करता है।

·         ‘मनुष्य क्या है?’ जैसे मूल प्रश्नों पर विचार करता है।

·         आदर्शवाद, यथार्थवाद जैसे दर्शन इससे प्रभावित होते हैं।

·         आध्यात्मिक शिक्षा की दृष्टि देता है।

5. ज्ञानमीमांसा और शिक्षा में उसका प्रभाव

·         ज्ञान की प्रकृति, स्रोत और सीमाओं को स्पष्ट करता है।

·         शिक्षण प्रक्रिया को समझने में सहायक।

·         संवाद, अनुभववाद, व्यवहारवाद जैसी शिक्षण पद्धतियों का आधार।

·         ज्ञान और विश्वास में भेद सिखाता है।

6. मूल्यमीमांसा और शिक्षा में उसका प्रभाव

·         नैतिक शिक्षा और चरित्र निर्माण में सहायक।

·         सह-अस्तित्व, न्याय, सहिष्णुता जैसे मूल्यों को बढ़ावा।

·         सौंदर्यबोध और कला शिक्षा को समर्थन।

·         शिक्षक और छात्र दोनों के नैतिक व्यवहार की अपेक्षा तय करता है।

7. दार्शनिक शाखाओं का शैक्षिक प्रभाव – सारांश

शाखा

शैक्षिक प्रभाव

Metaphysics

शिक्षा के उद्देश्य और वास्तविकता की व्याख्या

Epistemology

ज्ञान की प्रक्रिया और शिक्षण विधियाँ

Axiology

नैतिक शिक्षा और मूल्य आधारित पाठ्यक्रम

8. वर्तमान समय में शैक्षिक शोध में दर्शन की भूमिका

·         शोध की वैचारिक पृष्ठभूमि दार्शनिक आधार पर होती है।

·         Postmodernism, Feminism, Constructivism जैसे विचार प्रमुख हो रहे हैं।

·         मूल्य आधारित शोध (value-oriented research) को बढ़ावा।

·         Action Research, Phenomenology, Hermeneutics जैसी विधियाँ लोकप्रिय।

·         अब दर्शन शोध की दिशा भी तय करता है, सिर्फ आधार नहीं।

9. निष्कर्ष

·         दर्शन शिक्षा का मूल आधार है।

·         यह उद्देश्य, पद्धति, मूल्यांकन सब पर प्रभाव डालता है।

·         आधुनिक शोध और शिक्षण दोनों में दर्शन की आवश्यकता है।

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विकास के प्रमुख सिद्धांतों (Theories of Development) का तुलनात्मक रूप

 विकास के प्रमुख सिद्धांतों (Theories of Development) का तुलनात्मक रूप 

इसमें शामिल सिद्धांत हैं:

      • Piaget का संज्ञानात्मक विकास (Cognitive Development)
      • Freud का मनो-यौनिक विकास (Psycho-sexual Development)
      • Erikson का मनो-सामाजिक विकास (Psycho-social Development)
      • Havinghurst के विकासात्मक कार्य (Developmental Tasks)
      • Kohlberg का नैतिक विकास (Moral Development)
      • Gessel का परिपक्वता सिद्धांत (Maturation Theory)

क्र.

पहलू

Piaget

Freud

Erikson

Havinghurst

Kohlberg

Gessel

1

विकास का आधार

संज्ञानात्मक (बुद्धि)

यौन ऊर्जा

मनो-सामाजिक संघर्ष

जीवन कार्य

नैतिक निर्णय

जैविक परिपक्वता

2

मुख्य दृष्टिकोण

बुद्धि का निर्माण

मनो-यौनिक ऊर्जा

सामाजिक पहचान

जीवन कौशल

नैतिक स्तर

आनुवंशिक नियंत्रण

3

अवस्थाओं की संख्या

4

5

8

6 प्रमुख कार्य

3 स्तर, 6 अवस्थाएँ

कोई विशिष्ट नहीं

4

आयु की सीमा

जन्म–16 वर्ष

जन्म–13 वर्ष

जन्म–बुज़ुर्ग अवस्था

बाल्यावस्था से प्रौढ़ता

5–20+ वर्ष

जन्म से किशोर तक

5

पहली अवस्था

संवेदना-मोटर (0–2 वर्ष)

मुख-चरण (Oral)

विश्वास बनाम अविश्वास

शारीरिक नियंत्रण

पूर्व-परंपरागत नैतिकता

नवजात की गतिविधियाँ

6

अंतिम अवस्था

औपचारिक संक्रियाएँ (11–16 वर्ष)

जननांग-चरण

अखंडता बनाम निराशा

सामाजिक जिम्मेदारी

उत्तर-परंपरागत नैतिकता

परिपक्व व्यवहार

7

मुख्य फोकस

सीखने की प्रक्रिया

आंतरिक ड्राइव

सामाजिक संपर्क

जीवन चुनौतियाँ

न्याय का बोध

जैविक परिपक्वता

8

विकास का कारण

सक्रिय अन्वेषण

काम (libido)

संघर्ष समाधान

कार्य निष्पादन

नैतिक दुविधा

आनुवंशिकी

9

शिक्षक की भूमिका

सहायक व प्रेक्षक

व्यवहार विश्लेषक

मार्गदर्शक

सहयोगी

नैतिक मॉडल

पर्यावरण अनुकूलक

10

शिक्षा पर प्रभाव

गतिविधि-आधारित अधिगम

व्यवहार अवलोकन

सामाजिक कौशल निर्माण

कौशल विकास

नैतिक शिक्षा

उम्रानुसार सीख

11

आलोचना

सांस्कृतिक विविधता की उपेक्षा

यौन पक्ष की अतिशयोक्ति

अस्पष्टता

सामान्यीकृत कार्य

पश्चिमी संस्कृति पर केंद्रित

अनुभव की उपेक्षा

12

अनुसंधान का आधार

प्रयोगात्मक

नैदानिक केस स्टडी

अवलोकन

सामाजिक अध्ययन

नैतिक कहानियाँ

विकास चार्ट

13

सिद्धांत की प्रकृति

संज्ञानात्मक

मनोविश्लेषणात्मक

मनो-सामाजिक

सामाजिक कार्यपरक

नैतिक-ज्ञानात्मक

जैविक

14

सार्वभौमिकता

आंशिक

संस्कृति-विशिष्ट

आंशिक रूप से सार्वभौमिक

लचीला

कुछ हद तक सार्वभौमिक

सार्वभौमिक

15

आत्म-विकास की भूमिका

उच्च

मध्यम

उच्च

उच्च

उच्च

निम्न

16

सामाजिक परिवेश की भूमिका

मध्यम

निम्न

उच्च

उच्च

उच्च

मध्यम

17

विकास की दिशा

सरल से जटिल

शारीरिक क्षेत्रों से मानसिक तक

सामाजिक पहचान में प्रगति

कार्यात्मक से जटिल

नैतिक सोच में प्रगति

जैविक प्रगति

18

मानवीय स्वतंत्रता

सीमित

सीमित

लचीली

उच्च

उच्च

सीमित

19

व्यक्ति की पहचान

सोचने वाला प्राणी

काम से प्रेरित

सामाजिक प्राणी

कार्यशील व्यक्ति

नैतिक निर्णयकर्ता

जन्मजात क्षमताधारी

20

उद्देश्य

बुद्धि विकास

इच्छाओं का नियंत्रण

सामाजिक संतुलन

जीवन सफलता

नैतिक बोध

स्वाभाविक विकास


 

प्राकृतिकवाद (Naturalism) और शिक्षा

   प्राकृतिकवाद (Naturalism) और शिक्षा     1. प्राकृतिकवाद की  तत्व   मीमांसा (Metaphysics of Naturalism)      प्राकृतिकवाद की  तत्व   मीमां...